Monday, May 3, 2010

सस्ती शराब पिता हूँ और कुछ ऐसी ही शायरी करता हूँ |




“Who, being loved, is poor.”

रोज शाम होते ही वो याद आते है, वो तो नहीं है तो फिर बोतल याद आती है, बोतल मिले तो फिर चार आवारा दोस्त मिल ही जाते है, गाड़ी तो घर की है रास्ता बाप का, पूरी रात घूमते है, रात का सन्नाटा और खली रास्ते भी शामिल होता है इस महेफिल मैं, रात और बोतल कब ख़त्म होती है पता ही नहीं चलता, उनकी याद तो चाँद की तरह कही छुप जाती है,और हम सितारों से चमक उठाते है, अब सोचता हूँ की वो होते तो खाक इतना मज़ा आता...कोई घटिया सी काफी की वातानुकूलित दुकान या कुछ ऐसी ही फिल्म चलनेवाले सिनेमा हॉल मैं उसके साथ बैठकर उसकी दिनचर्या सुनाता, और उसकी हर छोटी सी बात पे ऐसी प्रतिक्रिया देता जैसे कोई बच्चा अपनी नानी से कोई परी कथा सुन रहा हो, जैसे की मुझे उसकी हर छोटी बात मैं मज़ा आता हो, ओस्कार वाइल्ड सही कहता था अगर वो अपने इस खयाल मैं प्रश्न चिन्ह का इस्तमाल न करते...“Who, being loved, is poor.”

तुम थे तब

तुम थे तब ये आसमान किसी दुल्हन का हीरो से लदा हुआ आँचल लगता था,
तुम नहीं हो तो ये किसी माँ की फटी हुई साडी सा दिखता है |
तुम थे तो ये चाँद भी मुझे तुम्हारी जुड़वाँ बहन सा दिखता था,
तुम नहीं हो तो इसमें मुझे कोई भूखे की रोटी दिखती है |
तुम थे तो मैं अपने आप को एक आशिक सा देखता था,
तुम नहीं हो तो मैं अपने आप को एक इन्सान सा लगता हूँ |
तुम थी तब मुझे तुम मैं ही दुनिया दिखती थी,
तुम नहीं हो तो अब सही मैं दुनिया देखि, सच-मुच की दुनिया,
और अब जब मैं तन्हा होता हूँ तो सोचता हूँ
की अच्छा है की तुम नहीं हो ....

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है

ये फोटो, ये स्टेटस, ये कमेन्ट की दुनिया
ये अंगूठे के भूखे लोगो की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
हर एक जिस्म ऑनलाइन, हर एक रूह इंविसिबल
जहाँ एक खिलौना है इन्सान की प्रोफाइल
जवानी भटकती है एक मुखोटा पहेनकर
जवान जिस्म सजते है फोटो एल्बम पर
ये फेसबुक की दुनिया मिल भी जाये तो क्या है
जला दो फूँक डालो ये दुनिया
तुम्हारी है तूम ही संभालो ये दुनिया

हार जाता हूँ, बूंद के सामने

उसकी बड़ी बड़ी आँखों के किसी एक छोटे कोने मैं छोटी सी आंसू की बूंद को देखकर पता नहीं मेरा गुस्सा अचानक गायब हो जाता है किसी जादूगर की तरह, मेरे लाखो लीटर आंसूओं को भूलकर, खुद मुझ ही से गद्दारी कर के मेरा अहम् अचानक किसी सन्यासी जैसा बर्ताव करता है, जो ऐसे तो मुझे रात भर परेशां करता है. अब बस सिर्फ मैं होता हूँ, उस छोटे से आंसू की बूंद और मेरे रिश्ते के बीच. अकेला. मैं चुप हो जाता हूँ, हार जाता हूँ, बूंद के सामने. और जब सुबह उठता हूँ पता नहीं कैसे हिंदी फिल्मो की तरह बिछड़े हुए भाई धी एंड में मिलते है, बिलकुल वैसे ही अहम् और गुस्से को में अपने पास पाता हूँ. फिर सुबह की चाय कड़वी लगाती है...और रात की दारु मीठी.

दिल्ही कोई खूबसूरत तवायफ से कम नहीं है और मैं आशिक से...

बल्लीमारान की वो गली अब पेचीदा दलील सी नहीं रही गुलज़ार साब, चांदनी चौक अब तो मेट्रो का एक स्टेशन भी है, mc donald's और मोबाइल की कुछ दुकानों के बाद थोडा आगे चलो तो एक मोड़ पे जूतों का बड़ा बाज़ार और कुछ हलवाई की दुकाने आती है, ये गली मैं बादशाह हलवाई ज्यादा जाना माना है वो सुखनवर से भी ज्यादा, क्यूँ न हो वो लाजवाब गाजर का हलवा जो बनता है, और फिर अचानक एक मोड़ पर एस.टी.डी की एक दुकान के बाद आती है वो हवेली...एक दम रोमांचित हो गया मैं जैसे ही हवेली मैं पैर रखा...ताज महल देखा, दीवाने आम देखा या फिर कुतुबमीनार भी देखा, लेकिन से सब चीजों से ज्यादा अहेमियत थी ये सुखनवर की छोटी सी हवेली की, ताज महल से सुन्दर या कुतुबमीनार से ऊँची या फिर ये कहलो की जमा मस्जिद से ज्यादा पाक...सच मैं आज भी पुरानी दिल्ही कोई खूबसूरत तवायफ से कम नहीं है और मैं आशिक से...

बिग बेंग

आज फिर दिल धड़का...जैसे बिग बेंग का धमाका...और फिर ब्लैक होल... काला छिद्र...विज्ञान इस काले छिद्र के बारे मैं कहता है की जिसमें वस्तुएं गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर कुछ भी नहीं आ सकता... दिल का क्या है वो तो धड़क गया, अब सहो और भरो खामियाजा जिंदगीभर ..

वास्ता नहीं

वास्ता नहीं मेरा आंसू या सूरा से अब | सपनो से है अब अनबन मेरी न दोस्ती मुस्कान से | किताबो मैं भी क्या रखा है, संगीत भी अब पकाता है | अक्कल का मुरब्बा बना के तो कब का खा गया मैं | किटलीपे चाय और दो चार सिगरेट शायद बहोत काफी है जीने के लिए | अब तो सिर्फ दिन भर ही जीता हूँ रात ढलते तुरंत सोता हूँ |

थे कुछ चहेरे

थे कुछ चहेरे लेकिन वो भी धुंधले हो गये, शायद मेरी यादो को भी किसी की नजर लग गई |अब तो मयखाने से आना मेरा भी बंदगी कहेलाता है | जबसे इत्र की एक शीशी मस्जिद से जो खरीदी है |

चाय

आज चाय में बिस्कुट डुबोके खाया नहीं, आज फिर बोतल में डुबोके सूरज उगाया |गम भुलाने को पीता था पता नहीं कब मज़ा आने लगा |

आज रात फिर मैंने चाँद की खिल्ली उडाई

आज रात फिर मैंने चाँद की खिल्ली उडाई, सारे सितारे हस पड़े और उल्लू चोंक गए | वो शर्म का मारा किसी बादल के पीछे जा छुपा, मैं गर्व का मारा किसी चट्टान पर जा बेठा | क्या दुश्मनी है वो बोला, मैं बोला की दोस्ती भी कौनसी है अपनी | अकेले होते है तो चाँद का उजाला भी चुभता है आँखों को, शायद समज गया होगा वो अबतक |

मैंने तन्हाई से भी यारी कर ली

लो आज फिर दिल भर आया, आज फिर बोतल खाली हो गई |अब मैं अपने आपको अकेला नहीं पाता, मैंने तन्हाई से भी यारी कर ली..

ना कोई है यहाँ प्यासा ना कोई देवदास

ना कोई है यहाँ प्यासा ना कोई देवदास | ना कोई है गाइड की वहीदा, ना कोई है पाकीज़ा की मीनाकुमारी| यहाँ नहीं होती सिर्फ एक ही महबूबा ना तो एक ही खलनायक | नहीं है कहीं भगवान का चमत्कार, नहीं है कोई दुआ की असर | कहाँ है चार्ली की मुस्कान या दी-सिका की सायकल ? कहाँ है वो हसीं नगमे या वो रंगीन किस्से ? बस है तो सिर्फ एक रसीदी टिकट वो भी आधा कटा, और सफ़र जिंदगी का |क्या जिंदगी चलती है उलटी ? या ये सब फिल्मे ? या हमारी सोच ?


नशा बरकरार रहना चाहिए |

चाहे हो महबूबा की मुस्कान में, या बोतल की बूँद में, या तनख्वा की तारीख में | शर्त एक ही है खुशहाल जिंदगानीकी, की नशा बरकरार रहना चाहिए |

बांट पाता हूँ प्यार

बांट पाता हूँ प्यार और मोहब्बत हर किसीसे, कैसे न अदा करू शुक्रिया तेरा जालिम | था एक ही दिल मेरे पास, गर न तू तोडती, न बिखेरती टुकडो में, इस दिल को, तो मुस्किल होती | लेकिन अब काफी आराम है, दे पाता हूँ किसीको भी टुकड़ा बिखरे हुए दिल का | और फिर भी बचते है चंद टुकड़े मेरे लिए....

सपने बोये थे

सपने बोये थे आँखों मैं पता नहीं था की आंसू की फसल पाउँगा...

सपने भी सस्ते देखता हूँ |

सस्ती शराब पिता हूँ और कुछ ऐसी ही शायरी करता हूँ | सोचता हूँ शायद कोई खरीद मुझे इस महंगाई के ज़माने मैं ! अब ये मत बोलना की मैं सपने भी सस्ते देखता हूँ |

दिल, प्यार और ऐतबार चंद लफ्ज़ है बस

दिल, प्यार और ऐतबार चंद लफ्ज़ है बस किताबों मैं बरक़रार |
मैं हेरान होता हूँ जब इसे कोई अपनी जिंदगी का हिस्सा बताता है |
क्या सच मैं होता है प्यार जैसे चिरागमैं जिन के होने का ऐतबार ?
क्या सच मैं होता है दिल जैसे भरे रेगिस्तान मैं अलीबाबा चालीस चोर की महेफिल ?
क्या सच मच होता है ऐतबार जैसे खुल जा सिम सिम पे गुफा खुलने का दारोमदार ?

लो आज फिर

लो आज फिर उनको बुरा लगा, लो आज फिर सच से तौबा कर ली |

जालिम मोहब्बत

बचा है कुछ अहंकार अब भी की दिल का दरवाजा बंध रखता हूँ, और पता नहीं कैसे बची है ये जालिम मोहब्बत, की दस्तक सुनने को भी बेक़रार रहता हूँ |

ऐ चाँद तू भी कोई सफ़ेद झूठ से बहेतरीन नहीं ..

अचानक जग गया आधी रात को, देखा की चाँद नज़र नहीं आता आज कल | पता नहीं बचपन से जनता हूँ उस गोल मटोल खूबसूरत चीज़ को | बचपन मैं सुना था की चंदा मामा है, जवान होते ही कैसे पता नहीं महबूबा का चहेरा नज़र आने लगा उसमे | यका यक मामा की सूरत कैसे मिल गई महबूबा से पता नहीं चला | लेकिन एक दो दिन गुज़र गए उसको देखे हुए | पुलिस ठाणे पहोच गया, फरियाद दर्ज करायी, की मेरा चाँद खो गया है | पुलिस भी चोंक गई, मैंने कहा की कैसे भी करके ढूंढ़ लाओ मेरे चाँद को, उन्होंने कहा की क्या रिश्ता है है तेरा और चाँद का ? मैंने कहा की पता नहीं , बचपन से देख रहा हूँ उसे, रिश्तो मैं तो हमेशा से ही कच्चा हूँ, क्या जरुरी है रिश्ते का होना ? अखबार मैं इश्तहार छपवाये, जो भी मेरे चाँद की जानकारी देगा उसे इनाम मिलेगा, वो भी नगद | सब व्यर्थ, बाद मैं किसीने बताया की चाँद तो लुका छुपी खेल रहा था किसी से ! पता नहीं क्यूँ हर खेल को मैं दिल से लगा लेता हूँ | अब कहाँ मेरा मारे मारे फिरना और उसका खेल खेलना, लेकिन अब मैं समाज गया हूँ, ऐ चाँद तू भी कोई सफ़ेद झूठ से बहेतरीन नहीं ..

इश्क अँधेरे से

सूरज के डूबने के साथ ही मेरे अंदर दिन उगता है, पता नहीं क्यूँ है मुझे ज्यादा इश्क अँधेरे से, किसी एक ऐसी ही काली रात मैं देखा था एक सपना, दिन चडते नींद खुलते ही टूट गया, लगता है वही खोया और टुटा हुआ रंगीन सपना ढूंढ रहा हूँ इन काली काली रातों मैं, हो सकता है शायद कही मिल जाये और रातो की नींद भी...


तेरी राह मैं

तेरी राह मैं यादों की एक पूरी नगरी को धरती तले दबा के बेठा हूँ, पता नहीं कौन आएगा कितने हजार सालों के बाद इस यादों की नगरी को खोजने....क्या हजारो साल बाद लोग समाज पाएंगे मेरी यादों की भाषा को ....या वो दबी की दबी ही राह जायेंगे...अमरत्व पाएंगी...अश्वथामा की तरह...

कह रहा हूँ

कह रहा हूँ कुछ बात जिंदगी के बारे मैं बुरा लगे तो माफ़ करना की शराब से बहेतर कोई गर्ल फ्रेंड नहीं होती, और लड़की से अच्छा कोई नशा नहीं होता.

बुल्ला की जाना मैं कौन

बुल्ला की जाना मैं कौन / न मैं फेसबुक /न मैं ऑरकुट / न मैं जीमेल / न मैं इ-मेल / न मैं मोबाइल / न मैं एस.एम.एस / बुल्ला की जान मैं कौन ....

थोडा जी लिया

आज फिर थोडा पि लिया, भाग दोड़ मैं फिरसे थोडा जी लिया | है दिमाग लेकिन वो कुछ कामका नहीं, आज फिर थोडा सा दिल से जी लिया | मिलते है रोज सेंकडो चहेरो से, आज फिर कुछ अपनों को देख लिया

है आवारगी अब इमान मेरा

सारे गमो को दारूमें मिला के पि गया, ऊपर से बाईटिंगमें आंसुओ को भी खा गया | दर्द से है अब ब्रेक-अप मेरा, मुस्कान से हे मेरी मोहब्बत | है आवारगी अब इमान मेरा, राह मेरी खानाबदोशी |

ये बात बात पे

ये बात बात पे पीना क्यूँ याद आता है | अब तो ये तय करना मुश्किल है की उन्हें याद करके हम पीते है ? या फिर हम पीते है इस लिए वो याद आते है ? ये शक भी गलत नहीं है की हम उन्हें याद ही पिने के लिए करते है ?

मैं अब अपनी जात पर उतर आऊंगा

रोना धोना बहोत हो गया, मुफ्त में पकाना बहोत हो गया | मैं खुद भी पक गया, सोचता हूँ बुरा फस गया | ये कविता जैसा कुछ लिखना, यूँ बात बात पे सेंटी होना | न था मैं पहेले कभी ऐसा और न रहूँगा अब ऐसा | मैं अब अपनी जात पर उतर आऊंगा, बस अब तो मैं मस्त ही रहूँगा |

तुम याद बहोत आओगी...

जब कभी मैं अकेला होता हूँ, सिर्फ तुम मेरे साथ होती हो, जब कभी मैं निराश होता हूँ तुम ही तो सहेलाती हो मुजको, ज्यादा ख़ुशी से पागल होता हूँ तो शांति से देखती रहेती हो मुझे , देर रात तक जागते हम दोनों, बारिश मैं भीगते हम दोनों, या फिर धुप मैं जलाते हम दोनों, परछाई की तरह पाया है तुम्हे... मैं तुम्हे क्यों छोड़ रहा हूँ क्यूँकी तुम्हारे आलावा है भी क्या मेरे पास छोड़ने के लिए...तुम याद बहोत आओगी...

ओवर टाइम

अब रोऊ भी कितना, आँख भी अब ओवर टाइम मांग रही है ...

3 comments:

Mehul Mangubahen said...

Kyarek..na kyarek nahi gahni vaar tari irsha thay che..solid, bas lakhya kar.

S Kumar said...

dada have never read so appealing and to heart blog ever... Great boss

Ashleshaa said...

aashiq ka janazaa hai.........like in the case of great poets,pain inspires random and rambling prose.Kuch kavitayein sirf dard se sehmat hoti hai,kuch pyaar se,kuch shararat se,but when you are able to combine these as sensitively as you do,lavari ,lavari nahi rahi ne kai judu,koi jadoo jevu bani jai chey.Its like a flowing river,rambling at times,trickling softly at other bends,gushing out in fury at falls and racing to meet the ocean at times.Hope the flow of this river is perennial because just like it helps you pour out your emotions,so also,it makes the reader absorb verse,to quench thirst.