
ये शायद आखरी कविता होगी मेरी
और शायद सबसे लम्बी भी
अब नहीं है कोई दर्द की गुंजाईश
अब नहीं रहा कोई अरमान ऐसा
जो आंसू में तबदील हो
और न ही कोई सपना
जो रंजिश मैं बदले
न है अब कोई तड़प
या फिर कहलो कशिश
जो की बाद में
मेरे ही सामने
खुद मुझे ही शर्मिंदा करे
बार बार
मोहब्बत और महबूबा
जैसे शब्द
शब्द ही तो है
यहाँ लोग रोटी बगेर भी जी लेते है
इश्क के रायते की अब किसे है फिकर
जानता हूँ थोड़ी कठिन है राह ये
है दिलकश काफी और ज़माने में
लेकिन अब तय है ये
बचता बचता
छुपता छुपाता
निकल लूँगा
लोभी दिल को मना लूँगा
दिमाग है तो कभी काम भी आयेगा
आखिर सवाल है
मेरी खोयी हुई मुस्कान का
जान गया हूँ अब
मैं मेरी खुद की मुस्कान की किंमत
न सोचा था कभी सबसे कीमती होगी
शायद उसकी मुस्कान से भी कीमती
मेरी खोयी हुई मुस्कान
ये आखरी कविता है मेरी
चलो कुछ यूँ करते है
चलो कुछ यूँ करते है
कुछ नहीं करते है
एक दिन छुट्टी लेके
बारिश मैं भीगते है
रात भर जागके
सितारे गिनते है
प्यार मोहब्बत को छोड़
दो चार घडी बात करते है
एक दुसरे का हाल पुछते है
छोटी सी है जिंदगी
छोटी ख़ुशी मैं निहाल करते है
એમ પણ બને
એમ પણ બને
કદાચ કઈ પણ ના બને
આમ તો દેખાય છે બધુ
ને સંભળાય પણ
છે સઘળું
કદાચ કાગડો વિવેકી
ને કોયલ તોછડી
એમ પણ બને
બધુ માની લેવું જમાનાનું
એ રીત સારી નથી
કદાચ તમે હો સાચા
એમ પણ બને
ને શું કામ ભાવ આપો છો
એને આટલો બધો
કદાચ તમારા પર જ
એ ચાંદો કવિતા કરતો હશે
એમ પણ બને